नया चुनाव आयोग, बिहार में वोटबंदी?
बिहार में नवंबर 2025 में विधानसभा चुनाव होने की संभावना है, लेकिन इससे पहले चुनाव आयोग ने एक बड़ा फ़ैसला लिया है। आयोग ने बिहार में 'स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन' (SIR) कराने का ऐलान किया है।
SIR के तहत बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों के लिए मतदाता सूची को नए सिरे से अपडेट किया जाएगा। इसके तहत, विशेष रूप से साल 2003 के बाद मतदाता सूची में पंजीकृत हुए सभी मतदाताओं से नागरिकता साबित करने वाले दस्तावेज़ भी मांगे जा रहे हैं।
इसी SIR के विरोध में 2 जुलाई को 'इंडिया' गठबंधन के एक प्रतिनिधिमंडल ने चुनाव आयोग से मुलाक़ात करके चुनाव से पहले लिए गए इस निर्णय का विरोध जताया। इस बैठक के बाद 'इंडिया' गठबंधन के ज़्यादातर नेताओं ने बैठक को ‘निराशाजनक’ और ‘असौहार्दपूर्ण’ बताया।
इस प्रतिनिधिमंडल में CPI (ML) के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य भी शामिल थे। CPI (ML) ने चुनाव आयोग के इस निर्णय को बिहार में 'वोटबंदी' करार दिया है और इसे आम मतदाताओं के वोट देने के अधिकार का हनन बताया है।
चुनाव आयोग के इस निर्णय से बिहार की एक बड़ी आबादी, जिसमें प्रवासी मज़दूर, श्रमिक और हाशिए पर रहने वाले लोग शामिल हैं, प्रभावित होगी। इन सभी मतदाताओं के लिए अपने माता-पिता के जन्म प्रमाण पत्र जैसे दस्तावेज़ जुटाना बेहद मुश्किल हो सकता है।
चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि आधार कार्ड, राशन कार्ड और सबसे अहम, चुनाव आयोग द्वारा ही जारी किया हुआ वोटर आईडी कार्ड जैसे सामान्य पहचान पत्र भी पर्याप्त नहीं होंगे। इन नियमों के कारण राज्य के बाहर काम करने वाले प्रवासी श्रमिकों सहित ग्रामीण क्षेत्रों के लाखों मतदाताओं के अपने मताधिकार से वंचित होने की आशंका है।
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